वो पहली मुलाका़त…..

आ पहली मुलाका़त की बात करें

कु़दरती करिश्मे की ग़र बात करें
आ तुमसे पहली मुलाकात की बात करें
*
हसीन सूरत वो ग़ज़ब अदायें
आ तेरी ख़ुदाई-नेमत की बात करें
*
गालों की लाली लबों की रंगत
आ तेरी मुस्कुराहट की बात करें
*
वो हर बात पर महकती मुस्कुराहट की बात करें
आ तुमसे पहली मुलाक़ात की बात करें

😎 12.Oct.2018

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असर अक्तूबर का..

वो बड़ा असर रखती है…….

दूर है मुझसे पर पूरा असर रखती है
उसकी यादें मुझ पर बड़ा असर रखतीं हैं
*
यादें बड़ी बेरहम हैं उस कम्बख्त़ की
ख्वा़ब तो आते हैं पर आँखे खुली रहती हैं
*
जाने कैसी मोहब्बत करती है सितमगर
रोज़ जान लेती है फिर जिन्दा करती है
*
वो चाँद सी हमेशा दूर तो है मुझसे, मगर
पूनम से अमावस का असर रखती है
*
उसके तसव्वुर से बदल जाते हैं दिल के मौसम
वो अपनी बातों में बड़ा असर रखती है
*
जिंदगी धूप बन चुकी है जानता हूँ, मगर
उसकी एक हँसी मुझ पर बादलो का असर रखती है

5/10/18
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इश्क़ क्या है.. प्यार क्या है..

मेरा तो सोचना तुम तक ही है
मेरी गुफ़तगू बस तेरी बात तक ही है
*
मेरी तलाश़ का मुका़म तुम ही हो
न तेरे पहले कुछ था ना तेरे बाद कुछ है
*
तुझे फुर्सत मिले तो आ कभी देख
तेरे बिना ज़िन्दगी किस क़दर बेहाल है
*
तेरी झलक से बदल जाती है दिल की बयार
दूर हो जाऊं तुमसे ….सोचना भी दुश्वार है
*
फासले रख कर क्या कर लोगे हासिल
क्या समझोगी इश्क़ क्या है… प्यार क्या है …

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11/10/18

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तुम ही तुम…………

सुबह सुबह की ख्वा़हिश तुम, हर शाम तेरे नाम
तुमसे अब क्या क्या छुपाऊँ, हर आरजू तेरे नाम ।
*
तुम हसीं, तुम नाज़नीं, खूबसूरत अहसास हो तुम
तुमसे आगा़ज़ मेरे इश्क़ का, हो अंजाम भी तुम ।
*
अनकहे ये ख़्वाब तैरते हैं दम-ब-दम ज़हन में
भनक जिनकी किसी को नहीं, तू बस एक मंजर देख ले ।
*
एक सल्तनत सी बन चुकी है, पर दुनिया से बहुत दूर है
कभी तो बारिश बन, इन अंगारो का रहबर बनकर देख ले ।
*
तुमको मैं क्या कह के पुकारूँ, हो चाँद सी दूर तुम
मेरी आह में तासीर होगी, खुद-ब-खुद लोगी असर तुम ।

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Oct 21, 2018

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मै जानूँ मेरा ख़ुदा जाने …….

कैसे साबित करूँ तुम मेरे पास ही रहती हो
जज्बा़त तुम समझतीं नहीं कहना मुझे आता नहीं
*
मैं तो दिल से मजबूर हूँ तेरी यादों में खो जाता हूँ
वरना ये सब तुझसे कहता, लिखना कौन चाहता है
*
मैं भी परेशान ही होता हूँ, इनको बाद में पढ़ कर
क्या करूँ, इश्क़ है, ज़ुबाँ नहीं तो हाथ चलते है
*
पर मुश्किल बहुत इन जज्बा़तों को लिखना
हर दर्द दम निकालता है लिखने से पहले
*
सोचता हूँ लिखूँ तो ऐसा क्या लिखूँ
फिर हर शब्द में तुझे मैं ही मैं दिखूँ
*
कह देता है दिल जैसे तैसे अपनी बात
तू ना भी जान … मै जानूँ मेरा ख़ुदा जाने …….

😎

Oct 26, 2018,

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तेरी खुशबू में तर तेरे अल्फ़ाज़…

दिल की बात…………..

वो आज भी टाल गया मिलने की बात
हमें भी इंतज़ार हाँ का है, आदत की बात
*
वादे तो वो यूंँ भी नहीं करता कभी
कैसे समझाऊँ उसे मिले बिना, दिल की बात
*
क़रीब रहूंँ तेरे ये चाह्त की बात
कुछ भी ना कर सका, ये शराफत की बात
*
थक जाता हुँ ये फितरत की बात
फिर मचल पड़ता हूँ, ये इश्क की बात
*
चाहा है सिर्फ तुझे ये भी क्या कहने की बात
तुम मिलो ना मिलो, ये कि़स्मत की बात
😎 8-Sep-2018

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……… ख़ुद को छुपा लिया मैंने

यादों को ही ज़हन में सजा लिया है मैंने
एक दिल था अपना उसे भी पत्थर का बना लिया मैंने
*
ये सोच कर कि खुशियाँ नहीं होती हर एक की किस्मत में
जो मिला उसी की परछाईं में खुद को छुपा लिया मैंने
*
कभी ना ख़त्म होने दी रोशनी उम्मीदों की मैंने
जब आस मिटी तो फिर से दिल को जला लिया मैंने
*
यकी़न ही नहीं होता उस पर अब कोई असर ही नहीं
सारे ग़मों को भुला खुशी समझ लिया जिसे मैंने

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18 / Sep / 18

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यादें बेरहम…

किस तरहा ….किस तरहा…?

अब कैसे गुज़रती है, बताऊं तो किस तरहा
हाले दिल क्या है तुझको, बताऊं तो किस तरहा
*
धड़कनो में तेरी सदाओं का शोर बहुत है
ख़ामोशी से तुमको ये मैं, सुनाऊं तो किस तरहा
*
मेरे चहरे पे तेरी यादों के अक्स उतरते है
मैं तुमसे या ज़माने से, छुपाऊं तो किस तरहा
*
तेरी मजबूरियों का खाका भी लाज़मी है
फ़ना होने की रस्म-ए-इश्क़, निभाऊं तो किस तरहा
*
पलते हैं रोज़ नये ख्वा़ब तेरी आगोश के ज़हन में
सब से छुपा कर तुमको इतना क़रीब, लाऊं तो किस तरहा

😎 10-Aug-2018

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कभी तो देख……

कभी इतना क़रीब आ कर तो देख
यूंँ नहीं ज़रा पास आ कर तो देख
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तुमसे कितनी मुहब्बत है कैसे बताऊँ
कभी नज़रों से नज़र मिला कर तो देख
*
तुझे अश्कों से भिगो दूंगा
मुझे कभी सीने में छुपा कर तो देख
*
मेरी बातें समझ नहीं आती ना तुझको
कभी इन्हें दुसरों से पढ़ा कर तो देख
*
रूहें हैं ता-उम्र की प्यास से भरी हैं
इश्क़ हूँ मुझ में कभी समा कर तो देख

😎15-Aug-2018

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मैं तो बस मैं हूँ..

मैं..मैं तो बस मैं हूँ..चाहें जैसी भी हूँ..
खुद से ही खुश…चाहें कैसी भी हूँ….
*
हूँ न मैं खूबसूरत, छरहरी..,
नायिकाओं सी काया है मेरी…
मुझे खुद पे ही है नाज़..
हाय​…क्या अदा है मेरि..
*
क्या करूँ, क्यों करूँ, क्या नहीं करूँ
अब नहीं करनी किसी की परवाह​…
नहीं करना कोई ख़याल​,
अब तो लगता है वही करूँ,
जो दिल में दबा के रखी थी चाह​…
*
अपने साथ लेकर, थाम हाथ में जुगनुओं को..
रौशन ज़िन्दगी बनाऊँगी, फिर से खिलखिलाऊँगी…
बहुत मनाया सबको, अब खुद को भी थोडा मनाऊँ…..

😎27-Aug-2018
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इश्क जुदा है मेरा …….

मेरे इश्क़ के तरीके़ जुदा हैं औरों से
बिना कुछ कहे-सुने प्यार करना आता है
*
तुमसे कुछ ख़ास रूहदारी है
दूर होकर भी मुझे पास रहना आता है
*
मिलोगी ना तुम कभी तो क्या नाकामी है
मुझे हवाओं से बातें करना आता है
*
कब क्या कहाँ कैसे होगा पता नहीं
जब तक हैं संग रंगों की बात करना आता है😎28-Aug-2018
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देखो जुलाई है क्या क्या लाई…

गज़ब हैं हम दोनों

सुहाने ख्वाब आँखों में बुना करते थे हम दोनों.
परिन्दों की तरह दिल से मिला करते थे हम दोनों.
*
काश ये ज़िन्दगी यूँ ही तेरी मोहब्बत में गुज़र जाए.
कुछ ऐसी ही दुआएं किया करते थे हम दोनों.
*
हमेशा ठंडी हो जाती थी चाय-काफी बातों बातों में.
वो बातें, जो उन आँखों से किया करते थे हम दोनों.
*
भले ही एक लम्हा मिल जाये एक दुसरे में सिमट जायें
चिरागों की तरह उस लम्हे को जला करते थे हम दोनों..
*
मिले भी सिमटे भी.. एक दुसरे में समा भी गये..
अब उन्हीं यादों को एक दुसरे को, लफ़्ज़ों में बताते हैं.. हम दोनों.

गज़ब हैं हम दोनों..
😎12-July-2018
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वो हर एक लम्हा !!!

वो मुहब्बत में भीगा एक एक लम्हा
याद आता है तेरे साथ बीता हर एक लम्हा
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सदियाँ सी बीतीं मगर अभी की बात हो जैसे
दम भर सा तेरे लबों पर जिया हुआ वो हर एक लम्हा
*
सिमट के बाहों में मेरी, वो खुद को मुझमें खोजना तेरा,
भूलता नहीं मैं वो तेरी सौगात का हर एक लम्हा
*
हथेलियों की पकड़ में चेहरा था जब तेरा
लबों पर थे लब और वो जश्ने-इश्क का हर एक लम्हा
*
अचानक एक आहट पर चौंक जाना तेरा
फिर ना-खुद हो लिपट जाने का हर एक लम्हा
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मैं आज भी पत्ते सा लरज जाता हूँ याद कर
मेरे कोरे दिल पर लिखा है वो हर एक लम्हा
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बाहों में थीं तुम और वो जाने को कहना तेरा
आज भी सिसकी सा अखरता है वो.. हर एक लम्हा
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20/07/2018

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जून में बहार​…

 

हाँ..मैं लिखता हूँ..

12-Jun-2018

मैं लिखता हूँ पर बस तेरे नाम लिखता हूँ
बताना होता है तुझे बस.. दिल का हाल लिखता हूँ
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तू तो कहता नहीं कभी, मैं वो सारे हालात लिखता हूँ
मै अपना ही नहीं, तेरा भी इकरार लिखता हूँ
*
तू समझ नहीं पाता, वो बातें तमाम लिखता हूँ
लिख कर पहुँच जाऊँ तुम तक इसलिए हर बार लिखता हूँ
*
इश्क़ है हमें इसलिए इश्क़ के पैगा़म लिखता हूँ
बस भूल ना हो जाए हमसे इसलिए अनाम लिखता हूँ

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तुम ही तुम हो ना …

12-Jun-2018

तन्हाइयाँ हैं …. मगर ख्यालों में तुम हो ना……
मुस्कुराती तेरी बातें और होंठों पर हंसी तुम हो ना…….
*
नींदे कहाँ, अब खुली आँखों का ख़्वाब तुम हो ना……
महकती रूह मेरी और हवाओं में खुशबू तुम हो ना…….
*
हर साँस एक सवाल है हर सवाल का जवाब तुम हो ना…..
कभी भूल होगी ही नही क्योंकि हर साँस में तुम हो ना…….
*
मिलेंगे फिर बिछड़ेंगे पर दिल में तुम ही तुम हो ना…..
चाहत मिल ही जाए जरूरी नहीं, दिल का करार तुम हो ना……
*
पलकें भीग तो जाती हैं, पर सुनहरी यादो में तुम हो ना……
खाली.. अनछुआ सा था ये दिल, अब रूह में तुम ही तुम हो ना…..

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वैशाख मिलन​

मिलकर भी मानो न मिल पाये
एक होकर भी मानो अधूरे ही रहे…

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याद आता है वो प्रथम मिलन !

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सीने में थीं साँसे गहरी
तेरे गालों की वो लाली गहरी
देख तुझे होता प्रतिपल चंचल मन
याद आता है वो प्रथम मिलन !!
*
जल रहा था वो आलिंगन
जल भी रहा था वो अधरों का चुम्बन
रहे अधजले ,रहे दूर कुछ बे मन
याद आता है वो प्रथम मिलन !!
*
फिर मिलने की आस संजोकर
अपने उर की सारी तृष्णायें दबाकर
किया विदा एक दूसरे को भारी मन
याद आता है वो प्रथम मिलन !!

😎  8/4/18

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पास थी तुम दूर फिर भी मै अकेला !

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उड़ती छाया सी वो घड़ियाँ
तेरी मधुर मुस्कानो की वो लड़ियाँ
जैसे आया सुख सपनों का मेला
पर उस दिन पल-पल जल जल यह सब झेला था
पास थीं तुम दूर फिर भी मैं अकेला !!
*
तेरी चंचल बातें सुन सुन
मादक मुस्कानें गिन गिन
वो दिन बेला भी थी क्या बेला
पर उस दिन पल-पल जल जल यह सब झेला था
पास थीं तुम दूर फिर भी मैं अकेला !!
*
तेरे मिलने से पहले जैसे
तेरी खुश्बू मिलने को आई
वह गंध करा गई जैसे गठबंधन अपना
पर उस दिन पल-पल जल जल यह सब झेला था
पास थीं तुम दूर फिर भी मैं अकेला !!

9 /4 /18
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तुम कहते हो कविताएँ लिखो !!
***
मेरा मन पूछता है….
१. क्या मेरे शब्दों में तेरी आँखों सी रंगीनी है ?
मैंने कहा ” नहीं !”
२. क्या मेरे शब्दों में तेरे हृदय सी कोमलता है ?
मैंने कहा ” नहीं !”
३. क्या मेरे शब्दों में तेरे चित्त सी चंचलता है ?
मैंने कहा ” नहीं !”
४. क्या मेरे शब्दों में तेरे कंठ सा संगीत है ?
मैंने कहा ” नहीं !”
५. क्या मेरे शब्दों में तुझसा वक्त का अनुमान है ?
मैंने कहा ” नहीं !”
तो मन बोला फिर क्या कविताएँ लिखूंगा तुमपर
मैंने कहा “पर मुझे तुमसे प्यार है ”
तो मन बोला” प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है ”
तब से एक पर्दा सा हटा है मुझसे
तब से मौन सा हूँ मैं खुद से
20 April😎
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तुमको पा कर पूर्ण हुआ मै लगता सबकुछ पूरा पूरा !!
***
चंचला को बाँहों में भर बादलों की सेज सा अहसास कर
खो चूका था मैं उसकी छाती पर उंडेल दिया उदगार मेरा
भर बाँहों में दीप्त भाल विशाल चूमे, ले हाथों में गुलाबी गाल चूमे
संध्या सम नयनों को चुम कर मैंने सुलाया
अधूरा सा मन घूम रहा था जैसे सब कुछ भुला भुला
तुमको पा कर पूर्ण हुआ मैं लगता सब कुछ पूरा पूरा
*
नव सुबह के बालों को सहलाया रसमय अधरों के सनमुख तब आया
होंठ अधरों पर टिके तो प्यास बुझी और अग्नि जगी
काम के ध्वज मत्त फहरे , उच्च तुंग -उरोज़ उभरे
चपल चंचल हाथों ने जो किया उत्पात उस दिन
उस कामिनी के कंच कलश से निरंतर रिसता आज दिन
अधूरा सा मन घूम रहा था जैसे सब कुछ भुला भुला
तुमको पा कर पूर्ण हुआ मै लगता सब कुछ पूरा पूरा
20 April😎
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लो कह दिया आज तुमने तुम मेरे हो -तुम मेरे हो !!
***
बाँहों में तुम बहुत सरल हो
आज पूरी छाँह मुझ पर किये हो
तुम मेरे हो तेरा पूरा श्रृंगार मेरा है
अंग अंग पर पूर्ण रूप अधिकार मेरा है
लो कह दिया आज तुमने तुम मेरे हो -तुम मेरे हो !!
*
धर अधरों पर अधर तुमने दिया वरदान सा
फूंक दिया हो ज्यों मृत देह में प्राण सा
मैं भी मौन कंठ में अब स्वर भरूँगा
तुम अकेली अब अंतर में तुम संग सब रंग रहूँगा
लो कह दिया आज तुमने तुम मेरे हो -तुम मेरे हो !!
*
यह तेरे अंग अंग से मोह मेरा
ये मधु अधरों का स्वाद तेरा
अब कौन रूप छल पायेगा मुझे भला
अब तेरे होंठो की कंठ उतर चुकी हाला
लो कह दिया आज तुमने तुम मेरे हो -तुम मेरे हो !!
😎 10 / 4 / 18
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शिकायतें ……
27/04/2018

 

शिकायतें कहाँ तेरी नींद से
तू अपनी नींद सो.. पर जाग
जाग रोज सुबहः गा एक नया गान
मना उल्लास ,कर अपने पर नित अभिमान
तू अपनी नींद सो पर जाग , रोज सुबह तू जाग
*
सूरज यूँ ही रोज़ चढ़ेगा और उतरेगा
न होगा बंद कभी ये क्रम
जीवन आशा मय उदगार , रोज़ देता तुझे पुकार
अपनी नियति को पहचान , मत कर इंतज़ार
तू अपनी नींद सो पर जाग , रोज सुबह तू जाग
*
सीधा साधा भोला मन है ,प्रश्न आना स्वाभाविक है
यही जगती का सत्य सघन है
इसी जगती में सारे उत्तर खोज़ ,उन्हें जगा
तू अपनी नींद सो पर जाग , रोज सुबह तू जाग
*
भावनायें अनगिनत है हृदय में ,पर ऐसा क्यों। … ?
क्यों आह को ही दिया निकलने का अधिकार तुमने….?
अपने साथ…. अपने साथ ये व्यवहार क्यों……?
तू अपनी नींद सो पर जाग , रोज सुबह तू जाग
*
सुबह दिन शाम रात सुकून थकान भीड़ असफ़लता और
सफ़लता का अभिमान ,ये सब हिस्सा है जीवन का
देख सारे रंग जगती के ,पर तू अपनी चंचलता दिखला
अपनी बात बता ,अपनी बात सुना
तू अपनी नींद सो पर जाग , रोज सुबह तू जाग…

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अप्रैल का खुमार​

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