वैशाख मिलन​

मिलकर भी मानो न मिल पाये
एक होकर भी मानो अधूरे ही रहे…

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याद आता है वो प्रथम मिलन !

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सीने में थीं साँसे गहरी
तेरे गालों की वो लाली गहरी
देख तुझे होता प्रतिपल चंचल मन
याद आता है वो प्रथम मिलन !!
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जल रहा था वो आलिंगन
जल भी रहा था वो अधरों का चुम्बन
रहे अधजले ,रहे दूर कुछ बे मन
याद आता है वो प्रथम मिलन !!
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फिर मिलने की आस संजोकर
अपने उर की सारी तृष्णायें दबाकर
किया विदा एक दूसरे को भारी मन
याद आता है वो प्रथम मिलन !!

😎  8/4/18

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पास थी तुम दूर फिर भी मै अकेला !

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उड़ती छाया सी वो घड़ियाँ
तेरी मधुर मुस्कानो की वो लड़ियाँ
जैसे आया सुख सपनों का मेला
पर उस दिन पल-पल जल जल यह सब झेला था
पास थीं तुम दूर फिर भी मैं अकेला !!
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तेरी चंचल बातें सुन सुन
मादक मुस्कानें गिन गिन
वो दिन बेला भी थी क्या बेला
पर उस दिन पल-पल जल जल यह सब झेला था
पास थीं तुम दूर फिर भी मैं अकेला !!
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तेरे मिलने से पहले जैसे
तेरी खुश्बू मिलने को आई
वह गंध करा गई जैसे गठबंधन अपना
पर उस दिन पल-पल जल जल यह सब झेला था
पास थीं तुम दूर फिर भी मैं अकेला !!

9 /4 /18
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तुम कहते हो कविताएँ लिखो !!
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मेरा मन पूछता है….
१. क्या मेरे शब्दों में तेरी आँखों सी रंगीनी है ?
मैंने कहा ” नहीं !”
२. क्या मेरे शब्दों में तेरे हृदय सी कोमलता है ?
मैंने कहा ” नहीं !”
३. क्या मेरे शब्दों में तेरे चित्त सी चंचलता है ?
मैंने कहा ” नहीं !”
४. क्या मेरे शब्दों में तेरे कंठ सा संगीत है ?
मैंने कहा ” नहीं !”
५. क्या मेरे शब्दों में तुझसा वक्त का अनुमान है ?
मैंने कहा ” नहीं !”
तो मन बोला फिर क्या कविताएँ लिखूंगा तुमपर
मैंने कहा “पर मुझे तुमसे प्यार है ”
तो मन बोला” प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है ”
तब से एक पर्दा सा हटा है मुझसे
तब से मौन सा हूँ मैं खुद से
20 April😎
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तुमको पा कर पूर्ण हुआ मै लगता सबकुछ पूरा पूरा !!
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चंचला को बाँहों में भर बादलों की सेज सा अहसास कर
खो चूका था मैं उसकी छाती पर उंडेल दिया उदगार मेरा
भर बाँहों में दीप्त भाल विशाल चूमे, ले हाथों में गुलाबी गाल चूमे
संध्या सम नयनों को चुम कर मैंने सुलाया
अधूरा सा मन घूम रहा था जैसे सब कुछ भुला भुला
तुमको पा कर पूर्ण हुआ मैं लगता सब कुछ पूरा पूरा
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नव सुबह के बालों को सहलाया रसमय अधरों के सनमुख तब आया
होंठ अधरों पर टिके तो प्यास बुझी और अग्नि जगी
काम के ध्वज मत्त फहरे , उच्च तुंग -उरोज़ उभरे
चपल चंचल हाथों ने जो किया उत्पात उस दिन
उस कामिनी के कंच कलश से निरंतर रिसता आज दिन
अधूरा सा मन घूम रहा था जैसे सब कुछ भुला भुला
तुमको पा कर पूर्ण हुआ मै लगता सब कुछ पूरा पूरा
20 April😎
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लो कह दिया आज तुमने तुम मेरे हो -तुम मेरे हो !!
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बाँहों में तुम बहुत सरल हो
आज पूरी छाँह मुझ पर किये हो
तुम मेरे हो तेरा पूरा श्रृंगार मेरा है
अंग अंग पर पूर्ण रूप अधिकार मेरा है
लो कह दिया आज तुमने तुम मेरे हो -तुम मेरे हो !!
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धर अधरों पर अधर तुमने दिया वरदान सा
फूंक दिया हो ज्यों मृत देह में प्राण सा
मैं भी मौन कंठ में अब स्वर भरूँगा
तुम अकेली अब अंतर में तुम संग सब रंग रहूँगा
लो कह दिया आज तुमने तुम मेरे हो -तुम मेरे हो !!
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यह तेरे अंग अंग से मोह मेरा
ये मधु अधरों का स्वाद तेरा
अब कौन रूप छल पायेगा मुझे भला
अब तेरे होंठो की कंठ उतर चुकी हाला
लो कह दिया आज तुमने तुम मेरे हो -तुम मेरे हो !!
😎 10 / 4 / 18
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शिकायतें ……
27/04/2018

 

शिकायतें कहाँ तेरी नींद से
तू अपनी नींद सो.. पर जाग
जाग रोज सुबहः गा एक नया गान
मना उल्लास ,कर अपने पर नित अभिमान
तू अपनी नींद सो पर जाग , रोज सुबह तू जाग
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सूरज यूँ ही रोज़ चढ़ेगा और उतरेगा
न होगा बंद कभी ये क्रम
जीवन आशा मय उदगार , रोज़ देता तुझे पुकार
अपनी नियति को पहचान , मत कर इंतज़ार
तू अपनी नींद सो पर जाग , रोज सुबह तू जाग
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सीधा साधा भोला मन है ,प्रश्न आना स्वाभाविक है
यही जगती का सत्य सघन है
इसी जगती में सारे उत्तर खोज़ ,उन्हें जगा
तू अपनी नींद सो पर जाग , रोज सुबह तू जाग
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भावनायें अनगिनत है हृदय में ,पर ऐसा क्यों। … ?
क्यों आह को ही दिया निकलने का अधिकार तुमने….?
अपने साथ…. अपने साथ ये व्यवहार क्यों……?
तू अपनी नींद सो पर जाग , रोज सुबह तू जाग
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सुबह दिन शाम रात सुकून थकान भीड़ असफ़लता और
सफ़लता का अभिमान ,ये सब हिस्सा है जीवन का
देख सारे रंग जगती के ,पर तू अपनी चंचलता दिखला
अपनी बात बता ,अपनी बात सुना
तू अपनी नींद सो पर जाग , रोज सुबह तू जाग…

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